Friday, June 20, 2008

कौन है ओबामा... बराक हुसैन ओबामा...

Source - http://www.ndtvkhabar.com/2008/06/07004211/Column-Arfa-Khanum-Sherwani-06.html

वह काला जादू है या फिर ख़ुद ही एक जादूगर... वह मुस्कुराता है तो मन मोहता है... लगता है सब कुछ अच्छा है... वह बोलता है तो यक़ीन करने को दिल चाहता है... वह लाखों की महफिल में लोगों को हंसाता है, रुलाता है और हिम्मत रखता है यह कहने की - दुनिया को सबक़ देने वाले अमेरिका में कालों का गोरों से और गोरों का कालों से मनमुटाव है - वह है ओबामा... बराक हुसैन ओबामा... अमेरिका का पहला अफ़्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार। ओबामा ने डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर अपनी जगह पक्की करके ही इतिहास नहीं बनाया, इस उम्मीदवारी ने कई इतिहास रचे हैं।
4 अगस्त 1961 में होनोलूलू में पैदा हुए ओबामा, इलिनॉइस से पहली बार सीनेटर चुनकर आए और चार साल के इस सफ़र ने उन्हें दुनिया के सबसे ताक़तवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी के क़रीब पहुंचा दिया। इसे करिश्मा ही कहेंगे कि सियासत और ज़िंदगी के तजुर्बे में उनसे सालों आगे पहुंचे हुए लोग, सियासत में उनसे बहुत पीछे छूट गए। सियासत में कदम रखने से पहले, कोलम्बिया विश्वविद्यालय और हार्वर्ड लॉ स्कूल से पढ़ाई करने वाले ओबामा ने एक यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर और वकील के तौर पर भी काम किया।
बदलाव मुमकिन है, अगर यक़ीन हो... अमेरिका बदल सकता है... जब ओबामा यह कहते हैं तो उन्हें सुनने वाले सिर्फ़ उनके समर्थक ही नहीं होते, बल्कि होती हैं वे घरेलू महिलाएं, बुज़ुर्ग और छात्र भी, जो उन्हें वोट देंगे या नहीं, यह तो तय नहीं, लेकिन वे यह ज़रूर जानना चाहते हैं कि क्या वाक़ई अमेरिका बदल रहा है। अमेरिकियों को शायद पहली बार यह लगा कि सिर्फ़ देश का नेता नहीं चुन रहे हैं, बल्कि ख़ुद एक सियासी आंदोलन का हिस्सा हैं।
ओबामा में एक तरह की कशिश है, एक ऐसी शख़्सियत, जिसने अमेरिका ही नहीं, दुनिया भऱ के मीडिया को दीवाना बना दिया है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति की गहरी समझ रखने वाले पत्रकार इस बात पर चर्चा नहीं कर रहे हैं कि एक श्वेत व्यक्ति के राष्ट्रपति बनने से अमेरिका के समाज या राजनीति में क्या बदलाव मुमकिन है, बल्कि उनकी शख़्सियत में उलझे पत्रकार इस बात में मशगूल हैं कि उनकी धीमी-सी मुस्कुराहट के क्या मायने हैं... किस रंग की टाई पहनकर ओबामा क्या कहना चाहते हैं। न्यूयार्क टाइम्स अपने पहले पन्ने पर लिखता है कि ओबामा यक़ीनन एक राजनीति फ़िनोमिना बन गए हैं। आसान शब्दों में कहें तो एक शख़्स, जो सियासत से आगे निकलकर एक प्रतीक बन गया है।
ओबामा की यह कशिश सिर्फ़ उनके समर्थकों को नहीं खींचती, बल्कि उनके विरोधियों को भी बांधे रखती है। वे यह तो कहते हैं कि किस तरह राजनीतिक तौर पर एक कम तजुर्बेकार आदमी उनका राष्ट्रपति बनने के लिए अच्छा नहीं, लेकिन इससे ज़्यादा यह बताते हैं कि किस तरह ओबामा की पहचान अमेरिका को संकट में डाल सकती है। बराक हुसैन ओबामा के हुसैन नाम ने सबसे ज़्यादा लोगों की तवज्जो खीची। इंटरनेट पर बाक़ायदा एक मुहिम चलाई गई, यह बताने की कि ओबामा अपनी मज़हबी पहचान छिपा रहे हैं और उनका बीच का नाम हुसैन बताता है कि वह ईसाई नहीं, मुस्लिम हैं। कहा गया कि एक मुसलमान को कैसे अमेरिका की तक़दीर तय करने की इजाज़त दी जा सकती है। दरअसल इसमें कुछ हद तक सच्चाई भी है। ओबामा केन्या के रहने वाले एक मुस्लिम पिता की औलाद हैं, लेकिन उनकी मां ईसाई हैं। ओबामा ने शादी भी एक ईसाई से ही की है। अपनी पहचान से होने वाले नुक़सान का अंदाज़ा ओबामा को भी था। ओबामा ने लाखों लोगों के मजमे में ऐलान किया कि वह मुसलमान नहीं, बल्कि उतने ही ईसाई हैं, जितना कोई दूसरा अमेरिकी। उनकी आस्था पर शक करना एक पवित्र किताब के अपमान जैसा है।
अपनी ख़ूबसूरत मुस्कुराहट और भाषणों की गर्मजोशी ने ओबामा को अमेरिकी राष्ट्रपति की कुर्सी के इतना क़रीब तो ला दिया है, लेकिन क्या वह वाक़ई उस बराबरी के अमेरिका की इमारत की नींव रख पाएंगे, जिसका ख़्वाब अमेरिका जनता को उनसे मिला है।

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