Sunday, October 5, 2014

आम आदमी पार्टी और विस्तार का खांचा !!! 


Image from DNA India

आज आम आदमी पार्टी जहाँ हो सकती थी वहाँ नही है और इस बात से आम आदमी पार्टी भी सहमत होगी! लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पंजाब के उप चुनाव परिणामों तक आप ने मायूस किआ! पार्टी के अन्दर विचार मंथन हुआ और दिल्ली को छोड़ फिलहाल चुनाव से किनारा कर पार्टी "मिशन विस्तार" पर केंद्रित हो गयी! ये निश्चय ही अच्छा कदम है और पार्टी को विस्तार करना चाहिए, पर क्या पार्टी ने सोचा कि इस विस्तार कि प्रकिआ में जोड़े किस किसको?

लोकसभा चुनाव से पहले दावा किआ गया कि 1 करोड़ लोग पार्टी के सदस्य बन गए है और पार्टी को 1.6 करोड़ वोट मिलें जो उम्मीद से कंम थे, पर 1 नए दल के लिए काफी थे! परन्तु  निश्चय ही ये जनादेश पार्टी को देश या राज्यों में राजनैतिक ताकत बनाने के लिए बहुत कम है और पार्टी को बहुत आगे जाने की जरूरत है!

आप की इस 4 कदम आगे और 2 कदम पीछे जाती कहानी को देश के परिपेक्छ की जगह 1 छोटी जगह से समझने कि कोशिश करते है, पर कमोवेश यही हाल देश भर में है! इस कहानी को मुंबई ले चलते है, जहाँ दिल्ली के बाद 2011 में अण्णा आंदोलन सबसे ज़ोरों पर था! 2011 में मुंबई के हर गली नुक्कड़ से भ्र्स्ताचार के खिलाफ आवाज़ बुलंद हो रही थी! हर वर्ग के लोगो के साथ नामी गिरामी फिल्मी हस्तिआ भी इस आंदोलन में हिस्सा ले रही थी! अनुपम खैर, ओम पुरी, अमीर खान, विशाल, रघु, शबाना  आजमी जैसे कितने ही फिल्मी सितारे खुल कर सामने आ गए थे! एक वक्त वो भी आया जब बांद्रा से जुहू तक की रैली में 2 लाख से ऊपर लोग जुटे! और यही मुंबई MMRDA (Read MMRDA story at http://newssoup.blogspot.com/2011/12/blog-post_31.html) ग्राउंड में हुए दिसंबर 2011 के आंदोलन से अण्णा आंदोलन को समाप्ति की ओर ले गया! सम्भव्ता यही से अण्णा और अरविंद के बीच दूरिआ भी आनी चालू हो गयी थी! बाद में अण्णा और अरविंद के रास्ते अलग हो गए! उसके बाद दिल्ली चुनाव के परिणामों ने देश में आप के लिए जबरदस्त माहौल बनाया पर और बहुत से लोग पार्टी में आए पर बहुत से पुराने लोग नही आए ...अब जब मिशन विस्तार चल रहा है तो मुंबई से ही दो पार्टी के पदाधिकारियों ने पार्टी पद छोड़ दिआ! इसके पह्ले भी कुछ कार्यकर्ता मुंबई टीम से निकल गए थे!

मेरा सवाल ये है कि विस्तार की इस कड़ी में आप किसे अपने साथ जोड़े? विस्तार बिना लक्ष्य के पूरा होने से रहा! मेरा मनंना है कि अगर आप को देश में सत्ता तक पहुँचना है तो ना सिर्फ़ आम लोगो को बल्कि उन्हें भी जोड़ना होगा जो विपरीत विचारधारा के है, जो शायद आज BJP या कांग्रेस को समर्थन दे रहे होंगे! आप को ज्यादा व्यापक होना होगा और सोचना होगा की वो दो लाख जो मुम्बई रैली में आए थे आज क्यो नही आते आपके आंदोलनों में?

इस समस्या कि जड़ है, पार्टी के निचले पायदान तक असहिष्णुता का भाव और कम से कम आम कार्यकर्ता को इस बात का आभास ना होना! (अगर आप पार्टी के किसी भी whatsapp समूह से जुड़े है तो इस बात को आसानी से समाझ पाएँगे) जब भी कोई कार्यकर्ता टकराव की बातें करता है तो उसे आलाकमान के पहले ही उसके साथी छोड़ जाने तक का हुक्म सुना देते है, और जब कोई साथी पार्टी छोड़ कर जाये, तो कुछ दिन मन मनौअल करके आगे निकल जाते है... नए साथी जोड़ने और शायद कुछ और पुराने खोने को! दिखने की कोशिश होती है की हमे फर्क नही पड़ता!

दूसरी समस्या आप के वर्ताव से कही ना कही लोगो को क्यो ये प्रतीत होता है कि सारे लोग जो कांग्रेस BJP को मदद करते है वो ग़लत है (भाजपा या कोंग्रेसी मित्रों से चाहे तो आप पूछ ले)! कभी ये क्यो नही सोचा जाता कि आप के पहले देश के पास विकल्प क्या थे? क्या पुराने रिश्ते तोड़ने में वक्त नही लग सकता? क्या आप पार्टी पर भरोसे के लिए और वक्त नही लग सकता? क्यो जब कोई नया सदस्य पार्टी में आता है तो कार्यकर्ता ये जताने की कोशिश करते है है भाई हम तो IAC के समय से है, आप नए है और थोड़ा पीछे रहिये! अगर कोई कही और किसी के साथ था भी, तो क्या किसी को अपनी भूल सुधार का मौका "आप" में नही मिल सकता? "आप" के अन्दर अलका लांबा जैसे बहुतेरे नेता होंगे जिन्हें कार्यकर्ता आज भी पूरे से स्वीकार नही करते! फिर कैसे होगा विस्तार?

मिशन विस्तार को आगे ले जाने के आप के पास दो विकल्प है! या तो नए लोगो को जोड़े या फिर उनके पास जाए जो कभी IAC के समय साथ थे और जिनका उदेश्य समान था! नए लोग अभी शायद किसी और पार्टी से ज्यादा उम्मीद करते है और उन्हें वक्त देना होगा और सबसे पहले उनके लिए "आप" को अपना भरोसा और मज़बूत करना होगा! क्यो नही पार्टी आज IAC से जुड़े लोगो के पास जाती? क्यो नही आज पार्टी अण्णा को वापस लाने के लिए कोशिश करती? माना आपने जब कोशिश कि तो अण्णा और नाराज हो गए पर तब अण्णा के पीछे आपके विरोधी भी लगे थे अपना स्वार्थ साधने (और कुछ मंत्री तक बन गए)! पर आज जब अण्णा अकेले है तो आप भी उनसे दूर् है! क्यो नही आज जो छोड़ कर जाता है, उसे अपनी भावनाओं से ये जता दे कि आप पार्टी को छोड़ सकते है पर पार्टी आपको नही! जब बर्लिन की दीवार टूट सकती है तो ये लोग तो आपके अपने थे!

सहिष्णुता और परिवार का भाव ही संगठन बनाता है, और जहाँ ये भाव होगा वही परिवार बड़ा बनेगा, संगठन बनेगा! पर ये संदेश निचले स्तर तक ले जाना होगा, कार्यकर्ता स्तर पर सहिष्णुता और परिवारभाव नेतृत्व ही पहुँचा सकता है!

Note: Writer is AAP member and worked for IAC since april 2011.