Saturday, December 31, 2011

इतिहास के वो तीन दिन !!!

लोकपाल Delhi से चल कर मुंबई के MMRDA ग्राउंड होते हुए राज्यसभा में आते आते मरणासन्न हालत में आ गया ! पिछले तीन दिन का रिकॉर्ड घुमाकर देखेंगे तो किसी एक्शन पैक मूवी की तरह था, उतार चड़ाव से भरपूर! इस फिल्म में सारे मुख्य किरदार अभिनय कर रहे थे, सोनिया से लेकर सुषमा तक, लालू से मुलायम तक, केजरीवाल, अन्ना, ममता, अरुण जेटली, शरद यादव, प्रणव दा ..सभी मुश्तैद थे ! भोंडापन दिखाने वाले कुछ नेताओ के लिए मीडिया के पास भी वक्त नहीं था ! चर्चा शुरू हुई अन्ना के मुंबई शो के फेल होने से, पर उस घटना की मीडिया और राजनेता खाल उधेड़ भी नहीं पाए थे, की सरकार की लोकसभा फिर राज्यसभा में किरकिरी हो गयी ! सरकार की लड़ाई विपक्ष, अन्ना के साथ साथ सहयोगियों से भी शुरू हो गयी ! २०११ गुजरने को है, अब लोकपाल का क्लाइमेक्स शायद २०१२ में ही पूरा हो ! वैसे सच कहे तो चाबी अब UP चुनाव परिणाम के पास है, पिछले ३ दिनों ने कम से कम ये तय कर दिया है की चुनाव परिणाम ही देश को सशक्त लोकपाल दे सकते है !

पिछले कुछ दिनों में जो हुआ, उसमे संसद में जो हुआ उसका विश्लेषण मै नहीं करना चाहूँगा, क्योंकि वो बहुत हद तक अपेक्षित था ! जो अपेक्षित नहीं था वो मुंबई के MMRDA ग्राउंड में घटा, और उसके दूरगामी परिणाम सामने आयंगे और आने भी चाहिए ! मैंने खुद मुंबई के हर अन्ना आन्दोलन को करीब से देखा है, अगस्त से ले कर MMRDA तक जो भी छोटे बड़े आयोजन हुए है, सभी देखे है ! इस आन्दोलन में २ बाते बहुत खास है, पहली MMRDA से जो दिखाया गया वही सत्य नहीं है और दूसरा जो हुआ, वो उम्मीद से कम जरूर था. अगस्त माह में मुंबई के बांद्रा से जुहू तक रैली निकली थी, जिसमे कम से कम १ लाख से ऊपर लोग थे ! फिर MMRDA में इतने कम लोग क्यों ? MMRDA ग्राउंड में हर बीतते पल से उम्मीद थी ...लोग जुटेंगे ! २७ तारीख की सुबह करीब ११:३० तक मंच सज चुका था, लोगो ने अपनी बात रखना शुरू कर दी थी, उम्मीद थी अन्ना की रैली के साथ लोग आ रहे होंगे और मैदान भरेगा ! १२ के बाद जब अन्ना आये, लोग भी आये, पर मैदान नहीं भरा ! उसके बाद विचारो का सिलसिला चलता रहा, मंच से ओजस्वी भाषण हुए ! किरण बेदी और केजरीवाल ने, अन्ना की तबीयत के चलते उनसे निरंतर अनुरोध किये, उपवास न करने के ! मेधा पाटकर ने मुलुंड की गरीब बस्तियों का भी मुद्दा उठाया ! अनुपम खेर और प्रीतीश नंदी भी पहुचे, भीड़ भी बड़ी पर फिर भी अपेक्षा से कम ! शाम होते होते विशाल शेखर भी आये और माहोल में देश भक्ति के गीतों के साथ गर्मी भर दी ! खैर पहला दिन बीता पर अपेक्षा से कम, और मीडिया ने उस लाइन को पकड़ लिया, जिसे अंत तक नहीं छोड़ा ! अगले दिन दोपहर तक खबरे आने लगी की अन्ना की तबीयत बिगड़ रही है और वो खबर भी आ गयी जिसका अन्ना विरोधियो को इन्तेजार था ! अन्ना ने आन्दोलन रद्द कर दिया था, पर शाम तक १ और बात घटी उसे बहुत कम लोगो ने तबज्जो दी ! शाम तक मैदान में पिछले दिन के मुकाबले कम से कम दोगुने लोग थे और जोश भी दोगुना ही था, वो भी बिना विशाल शेखर के संगीत के ! जी हाँ भीड़ बढ रही थी, लोग जुड़ रहे थे, पर मीडिया और विश्लेषक आगे बढ चुके थे ! अन्ना के आन्दोलन को सूर्यास्त करार दे दिया गया था !

माना की आन्दोलन में वो धार नहीं थी, और उसके लिए टीम अन्ना भी जिम्मेदार थी ! पर इसके दूरगामी नफे-नुक्सान पर कम ही लोगो ने ध्यान दिया ! असल में हम सतही तौर पर चीजो पर गौर करने लगे है, ये नहीं सोचते की इतिहास हार जीत से नहीं लिखे जाते ! हम १८५७ की क्रांति में हारे थे, पर इतिहास के पन्नो से कोई उसे नहीं मिटा सकता है ! इतिहास "साहस" को याद रखता है हार जीत को नहीं ! इतिहास कांग्रेस पार्टी को याद रखता, अगर सरकार ने परमाणु करार की तरह अपने को दाव पर लगा कर लोकपाल पास करने की जहमत उठाई होती ! इतिहास उन् पेचीदा भाषणों को याद नहीं रखेगा जो संसद में दिए गए, कल जब इतिहास लिखा जायेगा, तो लेफ्ट की तरह ममता को भी २९ दिसम्बर २०११ का जवाब देना होगा ! यहाँ कांग्रेस अपने ही किये को भूल गयी, पर टीम अन्ना ने सीखना जारी रखा ! उन्हें दुसरे ही दिन अपनी गलती का अहसास हो गया, गलती यह की अन्ना हजारे आज उनके लिए ही नहीं देश के लिए भी बहुमूल्य है ! टीम अन्ना के लिए तो अन्ना हजारे प्राण वायु है, और उनकी सेहत की फिकर किये बिना ही टीम मैदान में उतर गयी ! अगर सेहत अच्छी होती तो आन्दोलन लम्बा चलता और सप्ताह के अंत तक लोग आते भी, और जेल भी जाते ! लोग ना भूले की जेल भरो के लिए २ लाख से ऊपर योधा तैयार हो चुके थे ! दिल्ली पर भी धीरे धीरे अन्ना का रंग चढ़ा था, मुंबई पर भी चढ़ना लाजमी था, और मुंबई बांद्रा से जुहू तक की रैली में आपनी सहभागिता दिखा चुका था ! टीम अन्ना के हर आन्दोलन सफल थे क्योंकि उन्होंने २ विचार नहीं पनपने दिए थे, भ्रस्टाचार ख़तम होना चाहिए इस पर किसी के २ मत नहीं है ! MMRDA जाने पर २ मत थे, कुछ लोगो को लगा क्यों न संसद को १ मौका दे दिया जाये ! लोकसभा के कुछ हद तक विफल होते ही लोगो ने अन्ना की ओर फिर उम्मीद से देखना शुरू किया था, राज्यसभा का हाल देख, सारा मुंबई MMRDA की तरफ रुख कर चुका होता ! देश की जेलों में जगह नहीं बचनी थी ...क्योंकि ३० तारीख आते आते, सिर्फ १ मत रह जाना था ! देश के लिए अच्छी बात ये है, की टीम अन्ना अपनी हार से सबक ले चुकी है ... और जैसा की पहले कहा, इतिहास के लिए, हार जीत महत्वपूर्ण नहीं होती ...महत्वपूर्ण होता है आपने गलतियों से क्या सीखा ! २०११ की शुरुआत तक किसी ने, सपने में भी भ्रस्टाचार मुक्त भारत का सपना नहीं देखा होगा, पर ये अन्ना का साहस है जो आज २०१२ की शुरुआत में हमें कम से कम ऐसे सपने देखने का साहस देता है ! जय हिंद !!!

Vinod Sharma
31 Dec 2011 from Jabalpur

"कुछ चर्चे...चंद रोज पुराने"

नवोदय ..आज सालो बाद भी जेहन को कुदेरता है ..पर ये सुखद अहसास है ! वैसे इस स्कूल के बारे में सबके आपने ख्याल है और अपनत्व के चलते इसकी तारीफ से सरोवार है ..और हो भी क्यों ना, आखिरकार ये सिर्फ स्कूल नहीं हमारा घोसला भी था ..जिन्दगी के शायद सबसे नाजुक पल यहाँ गुजरे है ! बचपन से किशोर अवस्था, अकेलेपन से मित्रता, आंसुओ से आंसुओ तक का सफ़र तो यही तय हुआ है! पर आज मन का कोई कोना नवोदय और उसके बाद के विरोधाभासो पर लिखने कह रहा है..एक और परीपेक्ष नवोदय को देखने का !



तो लीजिये बात करते है नवोदय से निकले कुछ चुनिन्दा लोगो की ...आखिर स्कूल बनता भी तो उसमे पड़ने वालो से है. चलिए शुरू करते है सबसे परिचित ...माफ़ कीजियेगा चर्चित चहरे से, परिचय देने के लिए इनके पास वक्त ही कहाँ था ! हमारे चिन्मय दुबे जी ..आखिर किसने सोचा होगा की ये "इंडियन आर्मी" में पहुचेंगे ! फिर भी आप नहीं मानते तो शैलेश नायक जी को ही देख ले, ऐसा कौन होगा जिसका "माल" इन्होने ना खाया हो. किस किस ने इन्हें नहीं कोसा होगा, पर आज देखे पूरे नवोदय को १ साथ ला खड़ा करने का बीड़ा बखूबी निभा रहे है..आखिर नमक जो खाया है सबका :) है ना गजब का विरोधाभास ! वैसे आगे बड़ने से पहले बात कर लेते है रॉय सर की, आखिर ये कहानिया पीड़ी दर पीड़ी आगे रॉय सर से अच्छा कौन ले सकता है! पर इन् विरोधाभासो के बीच 'सर' १ धुरी पर स्थिर दिखते है, आज भी जिन्दगी की असली जद्दोजह्ज से दूर ! असली जद्दोजह्ज से इस लिए, क्योंकि 'सर' शादी से आज तक जो इंकार करते रहे है ! पर 'सर' आप मौका दे, आपके "चेले" जो दुनिया भर में फैले है, चारो दिशाओ में अश्वमेध यज्ञ के घोड़ो की तरह आपके लिए आज भी सुयोग, सुन्दर, सुशील कन्या ला सकते है !

चलिए वापस आते है अपने विषय पर ! सुना था, संदीप शुक्ला जी ने अपनी नवोदय की जिन्दगी में एक chapter खाली छोड़ दिया था, लडकिया आज भी आह भरती होगी ! खैर अभय शुक्ला जी ने जरूर आपने गुरु भाई से कुछ सीखा और नवोदय के बाद ही सही, वो chapter भरने की कोशिश जरूर की...यहाँ अपने विचारो को लगाम दे, क्योंकि यहाँ बात हुई है सिर्फ कोशिश की हुई है ...परिणाम की नहीं :) और संदीप भाई की कहानिया उनके खास मित्र ४-५ दिसम्बर के लिए बचा के रख सकते है ! अब अपने झुम्मक जी को देखे, स्कूल में रहते तो किसी ने नहीं सोचा होगा की ये "प्रोफ़ेसर" बनगे, असेम्बली हॉल में तो इन्होने कभी किसी को ये आभास नहीं कराया था ! और मनीष खरे कैसे पीछे रहते, आधी रात को मेस से केले और ढूध चुराते पकडे गए थे, मार भी पड़ी थी ! पर अब कस्टम ऑफिसर है और चोरी रोकने में ही लगे है. विरोधाभासी तो बाबुशा जी भी है ... अंग्रेजी पढ़ाना पेशा है पर कलम हिन्दी में चलती है पर जब चलती है तो दिलो दिमाग हिला देती है ! और "हरे निशान" से लेकर "अनमना विलोम" तक भी कोई कम विरोधाभासी नहीं लिखा है ... वैसे आपका लिखा आपके स्टुडेंट पड़ते है? शाकाहारी-मांसाहारी भोजन की तरह इनके लिखे पर भी लाल और हरे निशान होने चाहिए, ताकि बच्चो पर गलत असर ना पड़े :) आगे देखे..हमारे पुष्कर चौबे और प्रेम रस ! इन्होने १ ज़माने में रसिको से तो दोस्ती भी ना की थी ...पर आज जब लिखते है तो "टूटे बिखरे शब्दों में तुम्हें ही समेटने का प्रयास, हर लम्हा, हर क़तरे, हर टुकड़े में.. तेरी ही...बस तेरी ही तलाश" ...पूरे प्रेम रस से सराबोर ! अरे हाँ गजब बात ये है की तो आर्टिस्ट भी बन गए. पर Drwaing क्लास में नंबर बासुदेव हरदा और मनोज भाई ही ले पाए !



कहानिओ की फेहरिस्त लम्बी है ! पर अनोखा था वो वक्त जब जाने अंजाने विरोध किया, नियम थोड़े, नए नए तरीके निकाले (वो भी सिर्फ बाज़ार तक जाने के लिए), लैब के प्रयोग से भी बेहतर प्रयोग किये हॉस्टल में, छिप छिप कर बरगी नगर का विडियो देखा, कुछ थप्पड़ खाए, कुछ मारे, खाना फेका, रबड़ी बनाई, बीडी के कश तक मारे, रोये, हँसे, आहे भरी ...कुछ दिल भी मिले ..कुछ जीवन साथी तक बन गए .. कांच तोड़े पर दिल जोड़े !

बस यही है नवोदय ! बहुतरे स्कूल शायद इंग्लिश, हिन्दी, विज्ञानं पठाते होंगे, पर यहाँ जिन्दगी का पाठ भी पढ़ाया गया है ! अपनों से दूर अपनेपन का पाठ ...दोस्ती के मायने भी यही समझे है ...और इन् काले, स्याह, हरे, लाल, चमकीले, रंगों ने सभी को कभी ना कभी छुआ है और बस आज वही रंग बाहर निकल कर आ रहे है...१ नवोदय बहुयामी रंग ...बहुयामी प्रतिभाये !!!