Sunday, May 3, 2009

कौन क्यों और किसका चुनाव ??

May 2009 की इस गर्मी में इस साल ना ही "अबकी बरी अटल बिहारी है" न ही "कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ" है ...है तो बस हर की साल की तरफ गर्म हवाए...लू के थपेडे !!! पर हाँ कुछ लोगो के मन बेचैन है, सबके अपने अपने निहित कारण है. खैर आगे चलते है. प्रसंग है लोकसभा २००९ का चुनाव, कभी गौर किया है इस बार के चुनाव के मुद्दे क्या है? टीवी, अख़बार, नेताओ के भाषण से लेकर चुनावी पार्टियों के manifesto तक गौर से नजर डालिये. शायद खुश दिख जाये. कुछ नहीं तो हिन्दुश्तान का दुर्भाग्य ही देखने की कोशिश कर लीजिये.
इस ब्लॉग में आपको नेताओ की तरह सतही बाते नहीं कहूँगा, कुछ तथ्य सामने लाने का प्रयास भी करूँगा. पहले मौजूदा परिद्रश्या पर १ नजर डालते है !!! लालू, नरेन्द्र मोदी, रावडी देवी, वरुण गाँधी, मायाबती, समाजवादियों सभी की भाषा कही न कही सभ्या समाज की सीमओं को लांघती नजर आती है. लालू जी तो गाली तक भी उतर आये (देखे http://www.bhaskar.com/2009/05/03/0905030219_lalu_word.html). छुट्पुइए नेताओ की तो बात ही छोड़ दीजिये, जहाँ देखिये चप्पल और जूते चल रहे है.
प्रमुख पार्टियों के manifesto पर गौर करे तो तो कोई पार्टी के विचारधारा के साथ बंधी नहीं दिखती, सभी वहने को तैयार है. कांग्रेस करूणानिधि के साथ है ही जिन्हें लेकर उन्होंने गुजराल सरकार गिराई थी, क्योंकि करूणानिधि राजीव गाँधी की हत्या में शामिल LITTE प्रेमी है. खैर हमारे यहाँ लोगो की और नेताओ की यादाश्त थोडा कमजोर है, पर वामपंथी तो थोड़े दिन पहले ही शत्रु बने थे, उन्हें भी पुनः गले लगाने की तैयारी हो रही है. ये सिर्फ कांग्रेस की कहानी नहीं है, हर किसी के मन की यही दशा है. जहाँ तक बीजेपी और कांग्रेस के manifesto की बात करे तो दोनों ही देश को आतंकवाद, गरीबी से दूर करेगी. किसानो को सस्ता कर्ज मिलेगा, शिक्षा पर जोर देंगे, और देश को आर्थिक मंदी से निकालेंगे. परन्तु दोनों पार्टियों के पास कोई पारदर्शी नीति नहीं है, लोगो को ये नहीं बताया जाता आखिर कैसे? कैसे होंगे ये काम? कोई २ Rs KG पर चावल बंटेगा तो कोई ३ Rs KG पर, कोई ये क्यों नहीं सोचता की कब तक बाटेंगे, क्यों न मागने वाले हाथो को मजबूत करने की कार्ययोजना बने, क्यों न किसानो को कर्ज माफ़ी के बजाये बिजली और पानी पहुचाई जाये. चलिए कर्ज माफ़ कर भी दीजिये, मुफ्त अनाज बाँटिये या टेक्स कम कीजिये पर इसके परिणाम क्या होंगे, सरकार इतना पैसा लाएगी कहाँ से? ये सब दिया तो विकास कैसे होगा? सारी पार्टियों के Manifesto से उनके नाम हटा दे तो नेता भी अपने मेनिफेस्टो मुश्किल से पहचान पायेंगे. सब १ जैसे लगेंगे अपने सफ़ेद कपड़ो जैसे, नाम हटा दे सब १ जैसे है. हाँ कुछ बाते जरूर अलग है जैसे BJP का ब्लैक मनी पर स्टैंड, पर वास्तविकता में करेंगे कैसे? कोई नहीं बता सकता.
क्या वाकई हमारे पास कोई को मुद्दा बचा ही नहीं? पिछले २ साल में हमने सबसे जयादा बम धमाके झेले है, पर किसी भी केस में अभी तक कोई सजा नहीं हो पाई है. कितने ही अपराधी मैदान में है, उनके चुनाव पर कैसे रोक लगे? रिज़र्वेशन पर पिछले सालो इतने आन्दोलन हुए है उस पर देश की नीति क्या हो? भ्रष्टाचार पर कैसे काबू पाए? क्या RTI से काम पूरा हो गया? जीडीपी 5-6 % पर आ गई है उसे कैसे दुरुस्त करे? महगाई ने १३% का आंकडा छुया, कैसे सुनिच्तित करे की इसकी पुनरावृति न हो?
to be continued..