Sunday, October 5, 2014

आम आदमी पार्टी और विस्तार का खांचा !!! 


Image from DNA India

आज आम आदमी पार्टी जहाँ हो सकती थी वहाँ नही है और इस बात से आम आदमी पार्टी भी सहमत होगी! लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पंजाब के उप चुनाव परिणामों तक आप ने मायूस किआ! पार्टी के अन्दर विचार मंथन हुआ और दिल्ली को छोड़ फिलहाल चुनाव से किनारा कर पार्टी "मिशन विस्तार" पर केंद्रित हो गयी! ये निश्चय ही अच्छा कदम है और पार्टी को विस्तार करना चाहिए, पर क्या पार्टी ने सोचा कि इस विस्तार कि प्रकिआ में जोड़े किस किसको?

लोकसभा चुनाव से पहले दावा किआ गया कि 1 करोड़ लोग पार्टी के सदस्य बन गए है और पार्टी को 1.6 करोड़ वोट मिलें जो उम्मीद से कंम थे, पर 1 नए दल के लिए काफी थे! परन्तु  निश्चय ही ये जनादेश पार्टी को देश या राज्यों में राजनैतिक ताकत बनाने के लिए बहुत कम है और पार्टी को बहुत आगे जाने की जरूरत है!

आप की इस 4 कदम आगे और 2 कदम पीछे जाती कहानी को देश के परिपेक्छ की जगह 1 छोटी जगह से समझने कि कोशिश करते है, पर कमोवेश यही हाल देश भर में है! इस कहानी को मुंबई ले चलते है, जहाँ दिल्ली के बाद 2011 में अण्णा आंदोलन सबसे ज़ोरों पर था! 2011 में मुंबई के हर गली नुक्कड़ से भ्र्स्ताचार के खिलाफ आवाज़ बुलंद हो रही थी! हर वर्ग के लोगो के साथ नामी गिरामी फिल्मी हस्तिआ भी इस आंदोलन में हिस्सा ले रही थी! अनुपम खैर, ओम पुरी, अमीर खान, विशाल, रघु, शबाना  आजमी जैसे कितने ही फिल्मी सितारे खुल कर सामने आ गए थे! एक वक्त वो भी आया जब बांद्रा से जुहू तक की रैली में 2 लाख से ऊपर लोग जुटे! और यही मुंबई MMRDA (Read MMRDA story at http://newssoup.blogspot.com/2011/12/blog-post_31.html) ग्राउंड में हुए दिसंबर 2011 के आंदोलन से अण्णा आंदोलन को समाप्ति की ओर ले गया! सम्भव्ता यही से अण्णा और अरविंद के बीच दूरिआ भी आनी चालू हो गयी थी! बाद में अण्णा और अरविंद के रास्ते अलग हो गए! उसके बाद दिल्ली चुनाव के परिणामों ने देश में आप के लिए जबरदस्त माहौल बनाया पर और बहुत से लोग पार्टी में आए पर बहुत से पुराने लोग नही आए ...अब जब मिशन विस्तार चल रहा है तो मुंबई से ही दो पार्टी के पदाधिकारियों ने पार्टी पद छोड़ दिआ! इसके पह्ले भी कुछ कार्यकर्ता मुंबई टीम से निकल गए थे!

मेरा सवाल ये है कि विस्तार की इस कड़ी में आप किसे अपने साथ जोड़े? विस्तार बिना लक्ष्य के पूरा होने से रहा! मेरा मनंना है कि अगर आप को देश में सत्ता तक पहुँचना है तो ना सिर्फ़ आम लोगो को बल्कि उन्हें भी जोड़ना होगा जो विपरीत विचारधारा के है, जो शायद आज BJP या कांग्रेस को समर्थन दे रहे होंगे! आप को ज्यादा व्यापक होना होगा और सोचना होगा की वो दो लाख जो मुम्बई रैली में आए थे आज क्यो नही आते आपके आंदोलनों में?

इस समस्या कि जड़ है, पार्टी के निचले पायदान तक असहिष्णुता का भाव और कम से कम आम कार्यकर्ता को इस बात का आभास ना होना! (अगर आप पार्टी के किसी भी whatsapp समूह से जुड़े है तो इस बात को आसानी से समाझ पाएँगे) जब भी कोई कार्यकर्ता टकराव की बातें करता है तो उसे आलाकमान के पहले ही उसके साथी छोड़ जाने तक का हुक्म सुना देते है, और जब कोई साथी पार्टी छोड़ कर जाये, तो कुछ दिन मन मनौअल करके आगे निकल जाते है... नए साथी जोड़ने और शायद कुछ और पुराने खोने को! दिखने की कोशिश होती है की हमे फर्क नही पड़ता!

दूसरी समस्या आप के वर्ताव से कही ना कही लोगो को क्यो ये प्रतीत होता है कि सारे लोग जो कांग्रेस BJP को मदद करते है वो ग़लत है (भाजपा या कोंग्रेसी मित्रों से चाहे तो आप पूछ ले)! कभी ये क्यो नही सोचा जाता कि आप के पहले देश के पास विकल्प क्या थे? क्या पुराने रिश्ते तोड़ने में वक्त नही लग सकता? क्या आप पार्टी पर भरोसे के लिए और वक्त नही लग सकता? क्यो जब कोई नया सदस्य पार्टी में आता है तो कार्यकर्ता ये जताने की कोशिश करते है है भाई हम तो IAC के समय से है, आप नए है और थोड़ा पीछे रहिये! अगर कोई कही और किसी के साथ था भी, तो क्या किसी को अपनी भूल सुधार का मौका "आप" में नही मिल सकता? "आप" के अन्दर अलका लांबा जैसे बहुतेरे नेता होंगे जिन्हें कार्यकर्ता आज भी पूरे से स्वीकार नही करते! फिर कैसे होगा विस्तार?

मिशन विस्तार को आगे ले जाने के आप के पास दो विकल्प है! या तो नए लोगो को जोड़े या फिर उनके पास जाए जो कभी IAC के समय साथ थे और जिनका उदेश्य समान था! नए लोग अभी शायद किसी और पार्टी से ज्यादा उम्मीद करते है और उन्हें वक्त देना होगा और सबसे पहले उनके लिए "आप" को अपना भरोसा और मज़बूत करना होगा! क्यो नही पार्टी आज IAC से जुड़े लोगो के पास जाती? क्यो नही आज पार्टी अण्णा को वापस लाने के लिए कोशिश करती? माना आपने जब कोशिश कि तो अण्णा और नाराज हो गए पर तब अण्णा के पीछे आपके विरोधी भी लगे थे अपना स्वार्थ साधने (और कुछ मंत्री तक बन गए)! पर आज जब अण्णा अकेले है तो आप भी उनसे दूर् है! क्यो नही आज जो छोड़ कर जाता है, उसे अपनी भावनाओं से ये जता दे कि आप पार्टी को छोड़ सकते है पर पार्टी आपको नही! जब बर्लिन की दीवार टूट सकती है तो ये लोग तो आपके अपने थे!

सहिष्णुता और परिवार का भाव ही संगठन बनाता है, और जहाँ ये भाव होगा वही परिवार बड़ा बनेगा, संगठन बनेगा! पर ये संदेश निचले स्तर तक ले जाना होगा, कार्यकर्ता स्तर पर सहिष्णुता और परिवारभाव नेतृत्व ही पहुँचा सकता है!

Note: Writer is AAP member and worked for IAC since april 2011.

Saturday, September 15, 2012

FDI in Retail - पहला कदम, पहले ???

हर मर्ज की दवा विदेशी पैसा नहीं हो सकता ...सिकंदर के इलाज के लिये जो उसे द्वा दी जा रही थी उसी का ओवरडोस उसकी म्रत्यु का कारण बनी ! डा. मनमोहन कमोवेश यही इलाज भारत का कर रहे हैं |
पैसा तो भारतीयों का भी काले धन के रूप में विदेशो में पड़ा है और लगातार जा रहा है! डॉ सिंह उस पैसे को पहले लाने का प्रयास नहीं करते, उनकी इक्क्षा शक्ति काले धन के मामले में नगण्य साबित होती है ! भारतीय पैसे से बने mega Stores पर किसी को
आपत्ति  नहीं है  जहाँ ज्यादातर सामान भारतीय फैक्ट्रियो से होता है और मुनाफा भी भारतीय, पर शायद अमिरीकी चुनाव के दौरान ओबामा साहब को आपत्ति  हो!  अभी कहा तो ये भी जा रहा है की भारतीयों का ही कुछ काला  पैसा इस नहीं पहल से सफ़ेद होने वाला है ! अंग्रेजी में १ लाइन है "first step first", ये सिधान्त तो बच्चा पैदा होते ही सीखने लगता है ! पता नहीं दोष कहाँ है, Cambridge की पढाई में या डॉ सिंह इसे भूल रहे है? वरना डीजल की कीमते बढाने के पहले डीजल कारो पर ज्यादा कर पहले लागते, जो प्रदुषण भी ज्यादा फैला रही है  ! 
हम भारतीय किसी नई चीज का निर्माण कैसे करते  है, इसकी बानगी है
नई सड़क के दोनों छोरो पर मलबा छोड़ देना है ! हम नई कोशिश करते समय कभी भी दोनों सिरों को अच्छे से नहीं जोड़ते ! अच्छा होता FDI की मंजूरी के पहले बहस होती, और सरकार ये बता पाती कि कैसे छोटे व्यापारी और किसान प्रभावित नहीं होंगे? और इन् बातो को कानून में जोड़ा जाता न की छोड़ दिया जाता वालमार्ट जैसी कम्पनियो के "चरित्र" पर की वो किसे फायदा पहुचाते है और किसे नुकसान !!!

Tuesday, August 14, 2012

स्वतंत्रता @ 15 August 2012

क्यों सहम रहा? क्यों ठिठक रहा ? क्यों सोच रहा ?
छोड़ मनन, तर्क-कुतर्क, कौन सफल- असफल?
भीड़ छोड़, क्रांति बन, आन्दोलन बन...

किसे सुहाते भगत राजगुरु बाट जोहते भीड़ की?
78 ही थे दांडी के 240 मील कामार्त्त पथ पर ..

मत उलझ पैमाने मे, इतिहास लिखे जाते साहस के बलिदानों से !
मत खंगाल पुस्तके, रुक.. कल पर ही नजर डाल !
साहस गया, तो "दारा" तेरा देश रोया..
शासक गया, तो देश स्वतंत्रता के "विलास " मे खोया !


Saturday, April 7, 2012

मरघट ही है तेरी सीमा



किसी अपने के लिए जीने का तेरा भी मन करता होगा

पर तू न रहे, तो तेरी माँ का प्यार हार चढ़ी फोटो भी बरसेगा !

उसी अपने के लिए तू मरने से नहीं डरेगा

पर जीवन और बलि के संघर्ष में लड़ना क्यों छोड़ दिया ?

क्या आज तू जिन्दा मरघट में नहीं खड़ा है ?

जब मरघट ही संसार तेरा, तो "मर" से "अमर" क्या बुरा है ?

सड़क से अस्पताल तक जो रुधिर बहा

वो म्रत्यु का आवरण नहीं कतल की साजिश है !

तू मरघट में पड़ा, भ्रस्टाचारी मंदिरों का आरोहण करे

तैतीस करोड़ देवता भी अब रोजी रोटी को संघर्ष करे !

त्रिमूर्ति, तू कब तक टिक पायेगी मंदिरों में ?

ऐ राजा तो अब स्वर्ग से भी तुम्हे बाहर करे

आज मनुज-भक्षी हुँकार रहे, शिखरों पर नंगा नाच रहे !

तुझे स्वीकार है सब, पर स्वीकार नहीं की...

साधू के धवल श्वेत तेज पर, चिंता की काली लकीर !

पुरुषार्थ के हल चलाने वाले पर, स्वार्थ की ओस

सेना के गौरव शीश पर, हिचक कर फुंकारने वाला नाग !

क्यों भूल रहा है ......जब दानव बड़े तो

माँ ने ममत्व छोड़, नर मुंड पहन, संघार गले लगाया है

शपथधारी कृष्ण ने, देवता भीष्म पर चक्र उठाया है....!


लड़, मर हो जा अमर, जब आंसू ही तेरी माँ का आभूषण है

और जब लड़, तो तोड़ मृदु व्रत, नर मुंड पहन, चक्र उठा, आरोहण कर

रहा तटस्थ, तो समय लिखेगा तेरा भी अपराध।

- Vinod Sharma - 07 Apr 12 - 12: 42 PM

Saturday, December 31, 2011

इतिहास के वो तीन दिन !!!

लोकपाल Delhi से चल कर मुंबई के MMRDA ग्राउंड होते हुए राज्यसभा में आते आते मरणासन्न हालत में आ गया ! पिछले तीन दिन का रिकॉर्ड घुमाकर देखेंगे तो किसी एक्शन पैक मूवी की तरह था, उतार चड़ाव से भरपूर! इस फिल्म में सारे मुख्य किरदार अभिनय कर रहे थे, सोनिया से लेकर सुषमा तक, लालू से मुलायम तक, केजरीवाल, अन्ना, ममता, अरुण जेटली, शरद यादव, प्रणव दा ..सभी मुश्तैद थे ! भोंडापन दिखाने वाले कुछ नेताओ के लिए मीडिया के पास भी वक्त नहीं था ! चर्चा शुरू हुई अन्ना के मुंबई शो के फेल होने से, पर उस घटना की मीडिया और राजनेता खाल उधेड़ भी नहीं पाए थे, की सरकार की लोकसभा फिर राज्यसभा में किरकिरी हो गयी ! सरकार की लड़ाई विपक्ष, अन्ना के साथ साथ सहयोगियों से भी शुरू हो गयी ! २०११ गुजरने को है, अब लोकपाल का क्लाइमेक्स शायद २०१२ में ही पूरा हो ! वैसे सच कहे तो चाबी अब UP चुनाव परिणाम के पास है, पिछले ३ दिनों ने कम से कम ये तय कर दिया है की चुनाव परिणाम ही देश को सशक्त लोकपाल दे सकते है !

पिछले कुछ दिनों में जो हुआ, उसमे संसद में जो हुआ उसका विश्लेषण मै नहीं करना चाहूँगा, क्योंकि वो बहुत हद तक अपेक्षित था ! जो अपेक्षित नहीं था वो मुंबई के MMRDA ग्राउंड में घटा, और उसके दूरगामी परिणाम सामने आयंगे और आने भी चाहिए ! मैंने खुद मुंबई के हर अन्ना आन्दोलन को करीब से देखा है, अगस्त से ले कर MMRDA तक जो भी छोटे बड़े आयोजन हुए है, सभी देखे है ! इस आन्दोलन में २ बाते बहुत खास है, पहली MMRDA से जो दिखाया गया वही सत्य नहीं है और दूसरा जो हुआ, वो उम्मीद से कम जरूर था. अगस्त माह में मुंबई के बांद्रा से जुहू तक रैली निकली थी, जिसमे कम से कम १ लाख से ऊपर लोग थे ! फिर MMRDA में इतने कम लोग क्यों ? MMRDA ग्राउंड में हर बीतते पल से उम्मीद थी ...लोग जुटेंगे ! २७ तारीख की सुबह करीब ११:३० तक मंच सज चुका था, लोगो ने अपनी बात रखना शुरू कर दी थी, उम्मीद थी अन्ना की रैली के साथ लोग आ रहे होंगे और मैदान भरेगा ! १२ के बाद जब अन्ना आये, लोग भी आये, पर मैदान नहीं भरा ! उसके बाद विचारो का सिलसिला चलता रहा, मंच से ओजस्वी भाषण हुए ! किरण बेदी और केजरीवाल ने, अन्ना की तबीयत के चलते उनसे निरंतर अनुरोध किये, उपवास न करने के ! मेधा पाटकर ने मुलुंड की गरीब बस्तियों का भी मुद्दा उठाया ! अनुपम खेर और प्रीतीश नंदी भी पहुचे, भीड़ भी बड़ी पर फिर भी अपेक्षा से कम ! शाम होते होते विशाल शेखर भी आये और माहोल में देश भक्ति के गीतों के साथ गर्मी भर दी ! खैर पहला दिन बीता पर अपेक्षा से कम, और मीडिया ने उस लाइन को पकड़ लिया, जिसे अंत तक नहीं छोड़ा ! अगले दिन दोपहर तक खबरे आने लगी की अन्ना की तबीयत बिगड़ रही है और वो खबर भी आ गयी जिसका अन्ना विरोधियो को इन्तेजार था ! अन्ना ने आन्दोलन रद्द कर दिया था, पर शाम तक १ और बात घटी उसे बहुत कम लोगो ने तबज्जो दी ! शाम तक मैदान में पिछले दिन के मुकाबले कम से कम दोगुने लोग थे और जोश भी दोगुना ही था, वो भी बिना विशाल शेखर के संगीत के ! जी हाँ भीड़ बढ रही थी, लोग जुड़ रहे थे, पर मीडिया और विश्लेषक आगे बढ चुके थे ! अन्ना के आन्दोलन को सूर्यास्त करार दे दिया गया था !

माना की आन्दोलन में वो धार नहीं थी, और उसके लिए टीम अन्ना भी जिम्मेदार थी ! पर इसके दूरगामी नफे-नुक्सान पर कम ही लोगो ने ध्यान दिया ! असल में हम सतही तौर पर चीजो पर गौर करने लगे है, ये नहीं सोचते की इतिहास हार जीत से नहीं लिखे जाते ! हम १८५७ की क्रांति में हारे थे, पर इतिहास के पन्नो से कोई उसे नहीं मिटा सकता है ! इतिहास "साहस" को याद रखता है हार जीत को नहीं ! इतिहास कांग्रेस पार्टी को याद रखता, अगर सरकार ने परमाणु करार की तरह अपने को दाव पर लगा कर लोकपाल पास करने की जहमत उठाई होती ! इतिहास उन् पेचीदा भाषणों को याद नहीं रखेगा जो संसद में दिए गए, कल जब इतिहास लिखा जायेगा, तो लेफ्ट की तरह ममता को भी २९ दिसम्बर २०११ का जवाब देना होगा ! यहाँ कांग्रेस अपने ही किये को भूल गयी, पर टीम अन्ना ने सीखना जारी रखा ! उन्हें दुसरे ही दिन अपनी गलती का अहसास हो गया, गलती यह की अन्ना हजारे आज उनके लिए ही नहीं देश के लिए भी बहुमूल्य है ! टीम अन्ना के लिए तो अन्ना हजारे प्राण वायु है, और उनकी सेहत की फिकर किये बिना ही टीम मैदान में उतर गयी ! अगर सेहत अच्छी होती तो आन्दोलन लम्बा चलता और सप्ताह के अंत तक लोग आते भी, और जेल भी जाते ! लोग ना भूले की जेल भरो के लिए २ लाख से ऊपर योधा तैयार हो चुके थे ! दिल्ली पर भी धीरे धीरे अन्ना का रंग चढ़ा था, मुंबई पर भी चढ़ना लाजमी था, और मुंबई बांद्रा से जुहू तक की रैली में आपनी सहभागिता दिखा चुका था ! टीम अन्ना के हर आन्दोलन सफल थे क्योंकि उन्होंने २ विचार नहीं पनपने दिए थे, भ्रस्टाचार ख़तम होना चाहिए इस पर किसी के २ मत नहीं है ! MMRDA जाने पर २ मत थे, कुछ लोगो को लगा क्यों न संसद को १ मौका दे दिया जाये ! लोकसभा के कुछ हद तक विफल होते ही लोगो ने अन्ना की ओर फिर उम्मीद से देखना शुरू किया था, राज्यसभा का हाल देख, सारा मुंबई MMRDA की तरफ रुख कर चुका होता ! देश की जेलों में जगह नहीं बचनी थी ...क्योंकि ३० तारीख आते आते, सिर्फ १ मत रह जाना था ! देश के लिए अच्छी बात ये है, की टीम अन्ना अपनी हार से सबक ले चुकी है ... और जैसा की पहले कहा, इतिहास के लिए, हार जीत महत्वपूर्ण नहीं होती ...महत्वपूर्ण होता है आपने गलतियों से क्या सीखा ! २०११ की शुरुआत तक किसी ने, सपने में भी भ्रस्टाचार मुक्त भारत का सपना नहीं देखा होगा, पर ये अन्ना का साहस है जो आज २०१२ की शुरुआत में हमें कम से कम ऐसे सपने देखने का साहस देता है ! जय हिंद !!!

Vinod Sharma
31 Dec 2011 from Jabalpur

"कुछ चर्चे...चंद रोज पुराने"

नवोदय ..आज सालो बाद भी जेहन को कुदेरता है ..पर ये सुखद अहसास है ! वैसे इस स्कूल के बारे में सबके आपने ख्याल है और अपनत्व के चलते इसकी तारीफ से सरोवार है ..और हो भी क्यों ना, आखिरकार ये सिर्फ स्कूल नहीं हमारा घोसला भी था ..जिन्दगी के शायद सबसे नाजुक पल यहाँ गुजरे है ! बचपन से किशोर अवस्था, अकेलेपन से मित्रता, आंसुओ से आंसुओ तक का सफ़र तो यही तय हुआ है! पर आज मन का कोई कोना नवोदय और उसके बाद के विरोधाभासो पर लिखने कह रहा है..एक और परीपेक्ष नवोदय को देखने का !



तो लीजिये बात करते है नवोदय से निकले कुछ चुनिन्दा लोगो की ...आखिर स्कूल बनता भी तो उसमे पड़ने वालो से है. चलिए शुरू करते है सबसे परिचित ...माफ़ कीजियेगा चर्चित चहरे से, परिचय देने के लिए इनके पास वक्त ही कहाँ था ! हमारे चिन्मय दुबे जी ..आखिर किसने सोचा होगा की ये "इंडियन आर्मी" में पहुचेंगे ! फिर भी आप नहीं मानते तो शैलेश नायक जी को ही देख ले, ऐसा कौन होगा जिसका "माल" इन्होने ना खाया हो. किस किस ने इन्हें नहीं कोसा होगा, पर आज देखे पूरे नवोदय को १ साथ ला खड़ा करने का बीड़ा बखूबी निभा रहे है..आखिर नमक जो खाया है सबका :) है ना गजब का विरोधाभास ! वैसे आगे बड़ने से पहले बात कर लेते है रॉय सर की, आखिर ये कहानिया पीड़ी दर पीड़ी आगे रॉय सर से अच्छा कौन ले सकता है! पर इन् विरोधाभासो के बीच 'सर' १ धुरी पर स्थिर दिखते है, आज भी जिन्दगी की असली जद्दोजह्ज से दूर ! असली जद्दोजह्ज से इस लिए, क्योंकि 'सर' शादी से आज तक जो इंकार करते रहे है ! पर 'सर' आप मौका दे, आपके "चेले" जो दुनिया भर में फैले है, चारो दिशाओ में अश्वमेध यज्ञ के घोड़ो की तरह आपके लिए आज भी सुयोग, सुन्दर, सुशील कन्या ला सकते है !

चलिए वापस आते है अपने विषय पर ! सुना था, संदीप शुक्ला जी ने अपनी नवोदय की जिन्दगी में एक chapter खाली छोड़ दिया था, लडकिया आज भी आह भरती होगी ! खैर अभय शुक्ला जी ने जरूर आपने गुरु भाई से कुछ सीखा और नवोदय के बाद ही सही, वो chapter भरने की कोशिश जरूर की...यहाँ अपने विचारो को लगाम दे, क्योंकि यहाँ बात हुई है सिर्फ कोशिश की हुई है ...परिणाम की नहीं :) और संदीप भाई की कहानिया उनके खास मित्र ४-५ दिसम्बर के लिए बचा के रख सकते है ! अब अपने झुम्मक जी को देखे, स्कूल में रहते तो किसी ने नहीं सोचा होगा की ये "प्रोफ़ेसर" बनगे, असेम्बली हॉल में तो इन्होने कभी किसी को ये आभास नहीं कराया था ! और मनीष खरे कैसे पीछे रहते, आधी रात को मेस से केले और ढूध चुराते पकडे गए थे, मार भी पड़ी थी ! पर अब कस्टम ऑफिसर है और चोरी रोकने में ही लगे है. विरोधाभासी तो बाबुशा जी भी है ... अंग्रेजी पढ़ाना पेशा है पर कलम हिन्दी में चलती है पर जब चलती है तो दिलो दिमाग हिला देती है ! और "हरे निशान" से लेकर "अनमना विलोम" तक भी कोई कम विरोधाभासी नहीं लिखा है ... वैसे आपका लिखा आपके स्टुडेंट पड़ते है? शाकाहारी-मांसाहारी भोजन की तरह इनके लिखे पर भी लाल और हरे निशान होने चाहिए, ताकि बच्चो पर गलत असर ना पड़े :) आगे देखे..हमारे पुष्कर चौबे और प्रेम रस ! इन्होने १ ज़माने में रसिको से तो दोस्ती भी ना की थी ...पर आज जब लिखते है तो "टूटे बिखरे शब्दों में तुम्हें ही समेटने का प्रयास, हर लम्हा, हर क़तरे, हर टुकड़े में.. तेरी ही...बस तेरी ही तलाश" ...पूरे प्रेम रस से सराबोर ! अरे हाँ गजब बात ये है की तो आर्टिस्ट भी बन गए. पर Drwaing क्लास में नंबर बासुदेव हरदा और मनोज भाई ही ले पाए !



कहानिओ की फेहरिस्त लम्बी है ! पर अनोखा था वो वक्त जब जाने अंजाने विरोध किया, नियम थोड़े, नए नए तरीके निकाले (वो भी सिर्फ बाज़ार तक जाने के लिए), लैब के प्रयोग से भी बेहतर प्रयोग किये हॉस्टल में, छिप छिप कर बरगी नगर का विडियो देखा, कुछ थप्पड़ खाए, कुछ मारे, खाना फेका, रबड़ी बनाई, बीडी के कश तक मारे, रोये, हँसे, आहे भरी ...कुछ दिल भी मिले ..कुछ जीवन साथी तक बन गए .. कांच तोड़े पर दिल जोड़े !

बस यही है नवोदय ! बहुतरे स्कूल शायद इंग्लिश, हिन्दी, विज्ञानं पठाते होंगे, पर यहाँ जिन्दगी का पाठ भी पढ़ाया गया है ! अपनों से दूर अपनेपन का पाठ ...दोस्ती के मायने भी यही समझे है ...और इन् काले, स्याह, हरे, लाल, चमकीले, रंगों ने सभी को कभी ना कभी छुआ है और बस आज वही रंग बाहर निकल कर आ रहे है...१ नवोदय बहुयामी रंग ...बहुयामी प्रतिभाये !!!

Friday, August 21, 2009

यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते !!!



बरस रहा है रवि अनल, भूतल तवा सा जल रहा
है चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा
देखो कृषक शोषित, सुखाकर हल तदापि चला रहे
किस लोभ में इस अर्चि में, वे निज शरीर जला रहे !!!

बाहर निकलता मौत है, आधी अँधेरी रात है
और शीत कैसा पद रहा है, थरथराता गात है
तो भी कृषक इंधन जला कर, खेत पर है जागते
यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते !!!


 मैथिली शरण गुप्त की भारत भारती से ली गयी ये पंक्तिया जिस वेदना और यथार्थ को चिरितार्थ करती है, उसे समझना बहुत जरूरी है. कोसी जब रास्ता बदल कर बिकराल रूप दिखाए, तो उसका सब बहा कर ले जाती है.
वो नम आँखों के साथ, अपनी हड्डिया समेटता है और वापस जुट जाता है ...पता नहीं किस मोह में ... निश्चित ही अपने बच्चे के नंगे पैर और पीठ से चिपके पेट को देख कर उसका भी मन करता होगा.. सुना है सेठ जी भी कभी मजदूरी करते थे, फिर कही से पैसा मिला और एक रिक्शा खरीद लाये ...लक्ष्मी देवी की दया हुई और आज १२ ट्रक और ७ बस चल रही है. पर पैसा कहाँ से मिले, बैंक वाला NOC मांगता है. सरकारी पैसा है, खेत में पसीना बहाने की तो आदत है, पर यहाँ पसीने के साथ दुत्कार भी सुन्नी है! पर सेठ जी दयावान है, पैसा देते है और फसल कटते ही खेत पर अपना मुलाजिम भेज देते है! २५ टका से कम पर ब्याज मिल गया, मतलब सेठ जी भगवान का रूप बन कर आये है! सब तरक्की कर रहे है, देख कर मन तो करता है, अपने लिए ना सही अपने बच्चो की खातिर!
पर कोसी जो बहा कर ले गयी वो क्या था? किसी के लिए वो फसल थी, किसी के लिए भयानक बाढ़, तो किसी के लिए राजनीती! पर उसके लिए तो वो बच्चे सामान ही थी, जिसने उसके पसीने और धरती की कोख से जनम लिया था!
खैर नहीं छोड़ पाया इस बार भी, हिम्मत जुटाई और आगे तैयारी शुरू की!
पर किस्मत है धोखा देने को बनी है ...कभी हाथ आई तो बच्चे अच्छे स्कूल जा पायेंगे! पर ये क्या? टीवी का समाचार कहता है ये ८६ साल में सबसे कम बारिश है! सरकार बहुत कुछ कर रही है, बाहर से गेंहू आएगा, शक्कर भी आएगी, शायद सूखा देखने हेलीकॉप्टर भी आ जाये! चीजो के दाम गिर जायेंगे, नौकरी पेशा आदमी को राहत मिल जायेगी, जरूर मिलेगी! पर बिजली आ जाती तो ये साल कुछ पैदा हो जाता, भगवान से मिन्नत की थी तो बाड़ नहीं आई, वोट दिया था तो बिजली का बिल माफ़ कर दिया! पर बिजली आती तो फसल बच जाती, खुद तो आधी रोटी से गुजरा कर भी ले, पर वो कम्बख्त 12 घंटे से कम सिचाई में सूख जायेगा, ४ घंटे की फ्री बिजली नाकाफी है! बिजली मिल जाती, तो पैसा सेठ जी भी दे देते, बिल भरने को.... कोई कहता है, ये कैसा अर्थशास्त्र है...और जीडीपी, शेयर बाजार का अर्थशास्त्र बिगड़ जायेगा! ....पर लाभ हानि का उसे क्या पता ....वर्ना गुप्त जी ऐसा क्यों लिखते "यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते"
और जब त्यागने की बारी आई तो देह ही त्याग दी !!! इस बिडम्बना को कौन समझ पायेगा ?? पर ये बिडम्बना किसी का जीवन है !!!

Saturday, August 8, 2009

IS FREEDOM A CHOICE OR BONDAGE


In our previous blog I tried to know what frredom means to you.Yesterday when I was reading a dicourse - article of Swami Sukhbodhananda,he depicted a totally new concept that I put here for you to think-
"People imagine that they are free. If you look at yourself closely, it will become clear to you that you are bound. Most of us lead mechanical lives. Our perceptions, conclusions and beliefs are mechanical, too. So freedom in this scenario is no more than an illusion. In order to be free, your functioning has to change from the lower states of consciousness to the higher states of consciousness. You are free to evolve, but if you are mechanical, you are not free. Our inner nature is freedom. In fact, freedom is not the absence of bondage. If freedom is other than bondage, then freedom is bound by its freedom for it is free only in freedom and not in bondage. Why are we not satisfied with life despite abundance? Even though existence is in abundance, man is bound by poverty. Generally people are not prosperity consciousness, but are poverty consciousness. People operate from scarcity and not from abundance.
We are not satisfied with life as our level of being attracts a particular kind of life. Your life is like a small wheel and one is connected to bigger or smaller wheels. It is necessary that we disconnect from the smaller wheels of life and connect to the bigger ones. The smaller wheel represents name and fame, money, power... learn to disconnect. We are connected to them through our attitudes. There is a collective consciousness of small wheels and hence we are pulled by this consciousness into an abyss. Even wars are caused by these influences not necessarily by those who want war. Living in this consciousness, one will be more a wanting being rather than a satisfied being.
Does our inner growth impact the collective consciousness? There is the principle of the ladder. Imagine a ladder in which people are climbing. If one is unwilling to move up, it blocks others. If one helps the other to climb, one is not only helping oneself but also others. If everyone is disciplined, the process becomes smooth. If not, it is because of sleeping consciousness that one does not see the sanity of harmony and order. If one is not ready to be awake, then one blocks another. If one is willing to grow, it impacts the collective consciousness and in turn it also impacts people around. So it becomes necessary to make the right connection and disconnection. How important is the role of a Master? An enlightened Master's being is awakened to higher levels of consciousness. His 'presence' has a rippling effect on others. He can see your blocks clearly and helps you open up. We have four doors to be opened. They are a conscious mind, a subconscious mind, an unconscious mind and a divine mind. Conscious mind involves thoughts, decisions and discussions. Then the subconscious mind has to be opened. One has to have affinity to one's Master with a deep feeling of love and oneness. Even in disagreement with a conscious mind, a deep feeling of love opens the other's door. The unconscious mind has to be opened through surrender. Surrendering to a Master can be a great opening. Surrendering involves considering the Master's teaching as one's breath. Surrender your ego. Then the third door opens. Finally, the last door has to be opened by the power of grace. When all the three doors are opened, you will be flooded with grace."

Satsang: Swami Sukhabodhananda

Saturday, August 1, 2009

What Freedom means to you?

Everybody exist .It is only the few who live. To live you should have an idea. Yesterday there was an SMS from my cousin> "Tell me in one or two sentence What Freedom means to you? It clicked me and I brought it here for you to thinkThis is a question that I want to ask all of my friends.I'm quoting Lord Buddha's verse here-
"What we are is the result of what we have thought,
is built by our thoughts, is made up of our thoughts.......
Those who imagine truth in untruth
and see untruth in truth
never arrive at truth but follow vain desires.
Those who know truth as truth and untruth as untruth
arrive at truth and follow true desires. Beside this with adifferent angle -
I have also read a philosophic saying_ A man's feet must be planted in his country but his eyes should survey the World.So the burning topic for me is Freedom

Wednesday, June 24, 2009

टीम इंडिया और टी-20

में अपने २८ साल के विशाल जीवनकाल में पहली बार कुछ लिखने जा रहा हूँ ,यथावत ये प्रेरणा मुझे विनोद से हे मिली ,प्रेरणा इस बात की ,की यदि आप अपने देश के प्रति गंभीर हैं उसकी व्यवस्था से असंतुस्ट हैं,राजनेताओं के भाषण और उनके झूठे अस्वासन से ग्रसित हैं और आप प्रत्यक्ष रूप से देश क हित में कुछ नहीं कर प् रहे हैं तो परोक्ष रूप से अपनी गंभीरता,अपने विचार अपना क्रो़ध अपनी सारी कसर इस ब्लॉग में निकाल सकते हैं .वास्तु त् आप हिंदी में निपुण हो .न तो में राजनीती की बातों में इतना दक्ष हूँ न ही अंतर्राष्टीय मुद्दों पर किसी तरह की टिपण्णी करने के योग्य हूँ ,तो मैंने निर्णय लिया में अपना सारा क्रो़ध T20 विश्व कप पर निकालूँगा !हम हार गए ये तो आप जानते हैं ,और हमारी हार के १२५ करोड़ कारण है ,क्यूंकि इस देश का हर एक नागरिक अपने आप में एक क्रिकेट विशेषज्ञ है ,कोई महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी पर प्रश्न उठता है तो कोई I P L की थकान को ,कोई सहवाग की अनुपस्थ्तिती से दुखी था तो कोई युवराज के खराब फॉर्म को लेकर अपशब्द कह रहा था ,हम सब भूल गए की २ साल पहले इसी टीम ने भारत के क्रिकेट इतिहास में नया कीर्ति मान रचा था ,यही कप्तान (धोनी ) हमें देश विदेश में बहुत सारी श्रंखलायें जीता चूका है ,और इस कप्तान की रणनीति,टीम सेलेक्शन का लोहा सचिन तेंदुलकर जैसा महान क्रिकेटर भी मानता है ,और उससे भी बड़ी बात है झारखंड के इस छोटे खिलाडी को बड़ा सितारा बनाने वाले हम १२५ करोड़ लोग ही हैं ,दरअसल हम हिन्दुस्तानी लोग इस खेल को लेकर ज्यादा भावुक हैं, मुझे इस पर आपत्ति नहीं है, आपत्ति वाली बात ये है ,की हम भारतीये मीडिया के बारे सब जानते हुए भी उनकी कही हर बात पर बिना विचार किये मान लेते हैं ! इंग्लैंड से मैच के पहले धोनी ने मीडिया के कुछ प्रश्नों पर आपत्ति जताई और उनका उत्तर देने से इनकार कर दिया ,उसके बाद हम सब भारतीये टीम की जीत के लिए खेल देख रहे थे और मीडिया हारने की प्राथना कर रहा था ,क्यूंकि वो अब कप्तान को बताना चाहते थे की उन्हें बड़ा सितारा बनाने वाले भी वही हैं ,और हार के उपरांत खबरें आयीं ,शर्म करो ,अर्श से फर्श पर ,इत्यादिमें यहाँ हार की समीक्षा करने की चेष्टा नहीं करना चाहता ,बस यही दर्शाना चाहता हूँ की भारतीये टीम का खिलाडी बनना निश्चित हे कठिन है पर इस टीम का खिलाडी बने रहना उससे भी ज्यादा कठिन ,आपको अपने खेल में तो निपुण और दक्ष होना ही पड़ेगा साथ ही उससे जुडी राजनीति से निपटना ,मीडिया क साथ सम्बन्ध बनाने का गुण , ये सब आना चाहिए !!!
में नहीं मानता धोनी की कप्तानी कहीं से भी गलती है,उन्होंने इसके पहले भी टीम के हित में अनेक निर्णय लिए जो सफल भी हुए ,हार निश्चित ही निराशाजनक रही पर उससे आप किसी भी टीम की योग्यता पर सवाल नहीं उठा सकते ,किसी विशेषज्ञ ने खेल के दौरान कहा ,की अगर ये भारतीय टीम का भविष्य है तो ,सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ को वापस लाना चाहिए ,पर ये वाक्य मुझे हास्यपूर्ण ही लगा ,क्या वो नहीं जानते की सौरव अपने खेल के सबसे आखिरी पड़ाव पर थे जब उन्होंने ने संन्यास लिया ,उनकी उपलब्धियां निश्चित हे सरह्निये हैं परंतु आज के दृष्टिकोण से देखें तो क्या आप इन खिलाडियों को मौजूदा भारतीय टीम विशेषकर ट२० खेल के योग्य मानते हैं।अब में अपने के बोर्ड को विराम देता हूँ ,अपना धेर्य और संयम रखने के लिए आप सभी का धन्यवाद !
संदीप !!!

Sunday, May 3, 2009

कौन क्यों और किसका चुनाव ??

May 2009 की इस गर्मी में इस साल ना ही "अबकी बरी अटल बिहारी है" न ही "कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ" है ...है तो बस हर की साल की तरफ गर्म हवाए...लू के थपेडे !!! पर हाँ कुछ लोगो के मन बेचैन है, सबके अपने अपने निहित कारण है. खैर आगे चलते है. प्रसंग है लोकसभा २००९ का चुनाव, कभी गौर किया है इस बार के चुनाव के मुद्दे क्या है? टीवी, अख़बार, नेताओ के भाषण से लेकर चुनावी पार्टियों के manifesto तक गौर से नजर डालिये. शायद खुश दिख जाये. कुछ नहीं तो हिन्दुश्तान का दुर्भाग्य ही देखने की कोशिश कर लीजिये.
इस ब्लॉग में आपको नेताओ की तरह सतही बाते नहीं कहूँगा, कुछ तथ्य सामने लाने का प्रयास भी करूँगा. पहले मौजूदा परिद्रश्या पर १ नजर डालते है !!! लालू, नरेन्द्र मोदी, रावडी देवी, वरुण गाँधी, मायाबती, समाजवादियों सभी की भाषा कही न कही सभ्या समाज की सीमओं को लांघती नजर आती है. लालू जी तो गाली तक भी उतर आये (देखे http://www.bhaskar.com/2009/05/03/0905030219_lalu_word.html). छुट्पुइए नेताओ की तो बात ही छोड़ दीजिये, जहाँ देखिये चप्पल और जूते चल रहे है.
प्रमुख पार्टियों के manifesto पर गौर करे तो तो कोई पार्टी के विचारधारा के साथ बंधी नहीं दिखती, सभी वहने को तैयार है. कांग्रेस करूणानिधि के साथ है ही जिन्हें लेकर उन्होंने गुजराल सरकार गिराई थी, क्योंकि करूणानिधि राजीव गाँधी की हत्या में शामिल LITTE प्रेमी है. खैर हमारे यहाँ लोगो की और नेताओ की यादाश्त थोडा कमजोर है, पर वामपंथी तो थोड़े दिन पहले ही शत्रु बने थे, उन्हें भी पुनः गले लगाने की तैयारी हो रही है. ये सिर्फ कांग्रेस की कहानी नहीं है, हर किसी के मन की यही दशा है. जहाँ तक बीजेपी और कांग्रेस के manifesto की बात करे तो दोनों ही देश को आतंकवाद, गरीबी से दूर करेगी. किसानो को सस्ता कर्ज मिलेगा, शिक्षा पर जोर देंगे, और देश को आर्थिक मंदी से निकालेंगे. परन्तु दोनों पार्टियों के पास कोई पारदर्शी नीति नहीं है, लोगो को ये नहीं बताया जाता आखिर कैसे? कैसे होंगे ये काम? कोई २ Rs KG पर चावल बंटेगा तो कोई ३ Rs KG पर, कोई ये क्यों नहीं सोचता की कब तक बाटेंगे, क्यों न मागने वाले हाथो को मजबूत करने की कार्ययोजना बने, क्यों न किसानो को कर्ज माफ़ी के बजाये बिजली और पानी पहुचाई जाये. चलिए कर्ज माफ़ कर भी दीजिये, मुफ्त अनाज बाँटिये या टेक्स कम कीजिये पर इसके परिणाम क्या होंगे, सरकार इतना पैसा लाएगी कहाँ से? ये सब दिया तो विकास कैसे होगा? सारी पार्टियों के Manifesto से उनके नाम हटा दे तो नेता भी अपने मेनिफेस्टो मुश्किल से पहचान पायेंगे. सब १ जैसे लगेंगे अपने सफ़ेद कपड़ो जैसे, नाम हटा दे सब १ जैसे है. हाँ कुछ बाते जरूर अलग है जैसे BJP का ब्लैक मनी पर स्टैंड, पर वास्तविकता में करेंगे कैसे? कोई नहीं बता सकता.
क्या वाकई हमारे पास कोई को मुद्दा बचा ही नहीं? पिछले २ साल में हमने सबसे जयादा बम धमाके झेले है, पर किसी भी केस में अभी तक कोई सजा नहीं हो पाई है. कितने ही अपराधी मैदान में है, उनके चुनाव पर कैसे रोक लगे? रिज़र्वेशन पर पिछले सालो इतने आन्दोलन हुए है उस पर देश की नीति क्या हो? भ्रष्टाचार पर कैसे काबू पाए? क्या RTI से काम पूरा हो गया? जीडीपी 5-6 % पर आ गई है उसे कैसे दुरुस्त करे? महगाई ने १३% का आंकडा छुया, कैसे सुनिच्तित करे की इसकी पुनरावृति न हो?
to be continued..