Saturday, December 31, 2011

"कुछ चर्चे...चंद रोज पुराने"

नवोदय ..आज सालो बाद भी जेहन को कुदेरता है ..पर ये सुखद अहसास है ! वैसे इस स्कूल के बारे में सबके आपने ख्याल है और अपनत्व के चलते इसकी तारीफ से सरोवार है ..और हो भी क्यों ना, आखिरकार ये सिर्फ स्कूल नहीं हमारा घोसला भी था ..जिन्दगी के शायद सबसे नाजुक पल यहाँ गुजरे है ! बचपन से किशोर अवस्था, अकेलेपन से मित्रता, आंसुओ से आंसुओ तक का सफ़र तो यही तय हुआ है! पर आज मन का कोई कोना नवोदय और उसके बाद के विरोधाभासो पर लिखने कह रहा है..एक और परीपेक्ष नवोदय को देखने का !



तो लीजिये बात करते है नवोदय से निकले कुछ चुनिन्दा लोगो की ...आखिर स्कूल बनता भी तो उसमे पड़ने वालो से है. चलिए शुरू करते है सबसे परिचित ...माफ़ कीजियेगा चर्चित चहरे से, परिचय देने के लिए इनके पास वक्त ही कहाँ था ! हमारे चिन्मय दुबे जी ..आखिर किसने सोचा होगा की ये "इंडियन आर्मी" में पहुचेंगे ! फिर भी आप नहीं मानते तो शैलेश नायक जी को ही देख ले, ऐसा कौन होगा जिसका "माल" इन्होने ना खाया हो. किस किस ने इन्हें नहीं कोसा होगा, पर आज देखे पूरे नवोदय को १ साथ ला खड़ा करने का बीड़ा बखूबी निभा रहे है..आखिर नमक जो खाया है सबका :) है ना गजब का विरोधाभास ! वैसे आगे बड़ने से पहले बात कर लेते है रॉय सर की, आखिर ये कहानिया पीड़ी दर पीड़ी आगे रॉय सर से अच्छा कौन ले सकता है! पर इन् विरोधाभासो के बीच 'सर' १ धुरी पर स्थिर दिखते है, आज भी जिन्दगी की असली जद्दोजह्ज से दूर ! असली जद्दोजह्ज से इस लिए, क्योंकि 'सर' शादी से आज तक जो इंकार करते रहे है ! पर 'सर' आप मौका दे, आपके "चेले" जो दुनिया भर में फैले है, चारो दिशाओ में अश्वमेध यज्ञ के घोड़ो की तरह आपके लिए आज भी सुयोग, सुन्दर, सुशील कन्या ला सकते है !

चलिए वापस आते है अपने विषय पर ! सुना था, संदीप शुक्ला जी ने अपनी नवोदय की जिन्दगी में एक chapter खाली छोड़ दिया था, लडकिया आज भी आह भरती होगी ! खैर अभय शुक्ला जी ने जरूर आपने गुरु भाई से कुछ सीखा और नवोदय के बाद ही सही, वो chapter भरने की कोशिश जरूर की...यहाँ अपने विचारो को लगाम दे, क्योंकि यहाँ बात हुई है सिर्फ कोशिश की हुई है ...परिणाम की नहीं :) और संदीप भाई की कहानिया उनके खास मित्र ४-५ दिसम्बर के लिए बचा के रख सकते है ! अब अपने झुम्मक जी को देखे, स्कूल में रहते तो किसी ने नहीं सोचा होगा की ये "प्रोफ़ेसर" बनगे, असेम्बली हॉल में तो इन्होने कभी किसी को ये आभास नहीं कराया था ! और मनीष खरे कैसे पीछे रहते, आधी रात को मेस से केले और ढूध चुराते पकडे गए थे, मार भी पड़ी थी ! पर अब कस्टम ऑफिसर है और चोरी रोकने में ही लगे है. विरोधाभासी तो बाबुशा जी भी है ... अंग्रेजी पढ़ाना पेशा है पर कलम हिन्दी में चलती है पर जब चलती है तो दिलो दिमाग हिला देती है ! और "हरे निशान" से लेकर "अनमना विलोम" तक भी कोई कम विरोधाभासी नहीं लिखा है ... वैसे आपका लिखा आपके स्टुडेंट पड़ते है? शाकाहारी-मांसाहारी भोजन की तरह इनके लिखे पर भी लाल और हरे निशान होने चाहिए, ताकि बच्चो पर गलत असर ना पड़े :) आगे देखे..हमारे पुष्कर चौबे और प्रेम रस ! इन्होने १ ज़माने में रसिको से तो दोस्ती भी ना की थी ...पर आज जब लिखते है तो "टूटे बिखरे शब्दों में तुम्हें ही समेटने का प्रयास, हर लम्हा, हर क़तरे, हर टुकड़े में.. तेरी ही...बस तेरी ही तलाश" ...पूरे प्रेम रस से सराबोर ! अरे हाँ गजब बात ये है की तो आर्टिस्ट भी बन गए. पर Drwaing क्लास में नंबर बासुदेव हरदा और मनोज भाई ही ले पाए !



कहानिओ की फेहरिस्त लम्बी है ! पर अनोखा था वो वक्त जब जाने अंजाने विरोध किया, नियम थोड़े, नए नए तरीके निकाले (वो भी सिर्फ बाज़ार तक जाने के लिए), लैब के प्रयोग से भी बेहतर प्रयोग किये हॉस्टल में, छिप छिप कर बरगी नगर का विडियो देखा, कुछ थप्पड़ खाए, कुछ मारे, खाना फेका, रबड़ी बनाई, बीडी के कश तक मारे, रोये, हँसे, आहे भरी ...कुछ दिल भी मिले ..कुछ जीवन साथी तक बन गए .. कांच तोड़े पर दिल जोड़े !

बस यही है नवोदय ! बहुतरे स्कूल शायद इंग्लिश, हिन्दी, विज्ञानं पठाते होंगे, पर यहाँ जिन्दगी का पाठ भी पढ़ाया गया है ! अपनों से दूर अपनेपन का पाठ ...दोस्ती के मायने भी यही समझे है ...और इन् काले, स्याह, हरे, लाल, चमकीले, रंगों ने सभी को कभी ना कभी छुआ है और बस आज वही रंग बाहर निकल कर आ रहे है...१ नवोदय बहुयामी रंग ...बहुयामी प्रतिभाये !!!

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