Friday, August 21, 2009

यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते !!!



बरस रहा है रवि अनल, भूतल तवा सा जल रहा
है चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा
देखो कृषक शोषित, सुखाकर हल तदापि चला रहे
किस लोभ में इस अर्चि में, वे निज शरीर जला रहे !!!

बाहर निकलता मौत है, आधी अँधेरी रात है
और शीत कैसा पद रहा है, थरथराता गात है
तो भी कृषक इंधन जला कर, खेत पर है जागते
यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते !!!


 मैथिली शरण गुप्त की भारत भारती से ली गयी ये पंक्तिया जिस वेदना और यथार्थ को चिरितार्थ करती है, उसे समझना बहुत जरूरी है. कोसी जब रास्ता बदल कर बिकराल रूप दिखाए, तो उसका सब बहा कर ले जाती है.
वो नम आँखों के साथ, अपनी हड्डिया समेटता है और वापस जुट जाता है ...पता नहीं किस मोह में ... निश्चित ही अपने बच्चे के नंगे पैर और पीठ से चिपके पेट को देख कर उसका भी मन करता होगा.. सुना है सेठ जी भी कभी मजदूरी करते थे, फिर कही से पैसा मिला और एक रिक्शा खरीद लाये ...लक्ष्मी देवी की दया हुई और आज १२ ट्रक और ७ बस चल रही है. पर पैसा कहाँ से मिले, बैंक वाला NOC मांगता है. सरकारी पैसा है, खेत में पसीना बहाने की तो आदत है, पर यहाँ पसीने के साथ दुत्कार भी सुन्नी है! पर सेठ जी दयावान है, पैसा देते है और फसल कटते ही खेत पर अपना मुलाजिम भेज देते है! २५ टका से कम पर ब्याज मिल गया, मतलब सेठ जी भगवान का रूप बन कर आये है! सब तरक्की कर रहे है, देख कर मन तो करता है, अपने लिए ना सही अपने बच्चो की खातिर!
पर कोसी जो बहा कर ले गयी वो क्या था? किसी के लिए वो फसल थी, किसी के लिए भयानक बाढ़, तो किसी के लिए राजनीती! पर उसके लिए तो वो बच्चे सामान ही थी, जिसने उसके पसीने और धरती की कोख से जनम लिया था!
खैर नहीं छोड़ पाया इस बार भी, हिम्मत जुटाई और आगे तैयारी शुरू की!
पर किस्मत है धोखा देने को बनी है ...कभी हाथ आई तो बच्चे अच्छे स्कूल जा पायेंगे! पर ये क्या? टीवी का समाचार कहता है ये ८६ साल में सबसे कम बारिश है! सरकार बहुत कुछ कर रही है, बाहर से गेंहू आएगा, शक्कर भी आएगी, शायद सूखा देखने हेलीकॉप्टर भी आ जाये! चीजो के दाम गिर जायेंगे, नौकरी पेशा आदमी को राहत मिल जायेगी, जरूर मिलेगी! पर बिजली आ जाती तो ये साल कुछ पैदा हो जाता, भगवान से मिन्नत की थी तो बाड़ नहीं आई, वोट दिया था तो बिजली का बिल माफ़ कर दिया! पर बिजली आती तो फसल बच जाती, खुद तो आधी रोटी से गुजरा कर भी ले, पर वो कम्बख्त 12 घंटे से कम सिचाई में सूख जायेगा, ४ घंटे की फ्री बिजली नाकाफी है! बिजली मिल जाती, तो पैसा सेठ जी भी दे देते, बिल भरने को.... कोई कहता है, ये कैसा अर्थशास्त्र है...और जीडीपी, शेयर बाजार का अर्थशास्त्र बिगड़ जायेगा! ....पर लाभ हानि का उसे क्या पता ....वर्ना गुप्त जी ऐसा क्यों लिखते "यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते"
और जब त्यागने की बारी आई तो देह ही त्याग दी !!! इस बिडम्बना को कौन समझ पायेगा ?? पर ये बिडम्बना किसी का जीवन है !!!

2 comments:

Awadhesh Kumar Misra said...

padhakar man khush hogaya Bahut sundar likha hai tumne. I wrote it in different aspect- I'm quoting poet Trilochan's verse-
आखिर आज़ादी के क्या मायने हैं उस गरीब किसान के लिए ? एक जीवन दर्शन ये भी है जो सत्य है हकीकत है हमारे बहुसंख्यक गाँवके उन मजदूरों की जिनकी आवाज़ हैं महा कवी त्रिलोचन -
जब बाप मारा तब यह पाया - भूखे किसान के बेटे ने
घर का मलबा टूटी खटिया -कुछ हाथ भूमि - वह भी परती,
चमरौधे जूते का तल्ला - छोटी टूटी बुढिया औगी
दरकी गोरसी बहता हुक्का - लोहे की पट्टी का चिमटा
कंचन सुमेर का प्रतियोगी- द्वारे का पर्वत घूरे का
वह क्या जाने आज़ादी क्या
आजाद देश की बाते क्या?

Unknown said...

Wah sharmaji.. Kya likha hai? Maan gaye...Padhakar kisan ki vidambana par dukh hua jaroor hai..lekin ek khushi jaroor huee ke kisan ka dukh samajhane ke liye kisi sarhad ki jaroorat nahi hoti... Saat samundar paar baitha shakhs bhi kisan ke halat samajh raha hai.. I was in sasural for a week.. and seen the condition of farmers in nearby villages.. My God.. Pathetic....We live in a different INDIA my brother...